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सफेद चंदन या भस्म से लगाई गई तीन आड़ी रेखाएं भगवान शिव का श्रृंगार है जिसे त्रिपुण्ड कहते हैं। एक बार सनत्कुमारों ने भगवान कालाग्निरुद्र से त्रिपुण्ड का रहस्य पूछा ।भगवान कालाग्निरुद्र बोले-
त्रिपुण्ड तीन क्षैतिज रेखाएं चन्दन के लेप से शिव भक्त शिवलिंग पर लगाते हैं ,और स्वंय भी धारण करते हैं।यह तीन रेखाएं इड़ा , पिंगला एवं सुषुम्ना नाड़ी का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। मस्तक पर मध्यमा आदि तीन उंगलियों से त्रिपुण्ड लगाने से भक्ति तथा मुक्ति शिव जी से प्राप्त होती है। सेहत की दृष्टि से चमत्कारी लाभ होते हैं,परम शांति मिलती है।इसे शिव तिलक भी कहा जाता है।
त्रिपुण्ड की पहली रेखा के देवता महादेव जी हैं।वे ‘अ’ कार ,गार्हपत्य अग्नि- भू रजोगुण ,ऋग्वेद ,क्रिया शक्ति, पृथ्वी , धर्म ,प्रात: सवन है।
दूसरी रेखा के देवता महेश्वर हैं।जो ‘उ’ कार दक्षिणाग्नि ,आकाश ,सत्व गुण , यजुर्वेद , माध्यन्दिन सवन , इच्छा शक्ति अंतरात्मा हैं।
तीसरी रेखा के देवता शिव हैं जो ‘ म ‘ कार आवाह्नीय अग्नि ,परमात्म रुप तमो गुण स्वर्ग रुप, ज्ञान शक्ति, सामवेद, और तृतीय सवन हैं ।
इन तीनों देवों को नमस्कार करके शुद्ध हो कर त्रिपुण्ड धारण करने से सभी देवता प्रसन्न होते हैं।इस प्रकार जो कोई भी मनुष्य भस्म का त्रिपुण्ड करता है उसे सब तीर्थों में स्नान का फल मिल जाता है । वह सभी रुद्र-मन्त्रों को जपने का अधिकारी होता है वह सब भोगों को भोगता है और मृत्यु के बाद शिव-सायुज्य मुक्ति प्राप्त करता है ।
ऐसा भक्त भोग एवं मोक्ष का अधिकारी होता है।
त्रिपुण्ड चंदन या भस्म से लगाया जाता है. चंदन और भस्म माथे को शीतलता प्रदान करता है.अधिक मानसिक श्रम करने से विचारक केंद्र में पीड़ा होने लगती है. ऐसे में त्रिपुण्ड ज्ञान-तंतुओं को शीतलता प्रदान करता है. इससे मानसिक शांति मिलती है.
हिंदू परम्परा के अनुसार ललाट (माथे) को सूना नहीं रखना चाहिए।(खास ब्राह्मण और संत के लिए तो ये कहा गया है कि खाली माथा रखे तो चांडाल के समान ही माना जाए) मतलब ये कि वो देव कार्य से विमुख है वो पूजे जाने या सम्मान योग्य नहीं है। इसके पीछे मान्यता यह है कि चन्दन का तिलक लगाने से मनुष्य के पापों का नाश होता है।व्यक्ति संकटों से बचता है और लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है। ज्ञान तंतु संयमित और सक्रिय रहते हैं।