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*अँधेरे को क्यों देखता है ?*
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एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा कि.. *“गुरुदेव ! मैं आनंदपूर्वक अपने परम लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता हूँ ?”*
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गुरूजी ने रात्रि में जवाब देने का आश्वासन दिया।
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शिष्य रोज शाम को नदी से गागर भर लाता था, लेकिन गुरूजी ने उसे उसदिन शाम को गागर लाने से मना कर दिया।
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रात्रि हुई, शिष्य ने गुरुदेव को याद दिलाया। गुरूजी ने शिष्य को एक लालटेन थमाया और कहा.. *“जाओ ! पहले नदी से यह गागर भर लाओ।”*
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उस दिन अमावस्या की घोर काली रात थी। अँधेरे में अपने ही हाथ पैर नहीं दिखाई दे रहे थे।
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इसपर भी वह व्यक्ति कभी इतनी अँधेरी रात में बाहर नहीं निकला था। अतः उसने कहा..
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*गुरूजी ! नदी तो यहाँ से बहुत दूर है और इस लालटेन के प्रकाश में तो केवल दो कदम तक ही स्पष्ट दिखाई देता है..*
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भला मैं इतना लम्बा सफ़र अँधेरे में कैसे तय करूँगा ? आप सुबह तक प्रतीक्षा कीजिये, मैं गागर सुबह भर लाऊंगा..
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गुरूजी बोले.. *“हमें जल की आवश्यकता तो अभी है और तुम सुबह लाने की बात कर रहे हो। जाओ ! गागर भरकर लाओ।”*
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दीनभाव से शिष्य बोला – *“ गुरूजी ! अँधेरे में जाना संभव नहीं ।”*
गुरूजी बोले.. *“अरे मुर्ख ! अँधेरे को क्यों देखता है ? रौशनी को देख और आगे बढ़। रौशनी तेरे हाथों में है और तू अँधेरे से डर रहा है।”*
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गुरूजी के ऐसे वचन सुनकर *शिष्य आगे बढ़ा तो प्रकाश भी आगे बढ़ गया।* बस फिर क्या था।
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शिष्य लालटेन लेकर आगे बढ़ता रहा और नदी तक पहुँच गया और गागर भरकर लौट आया।
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शिष्य बोला.. “ये लो गुरूजी ! आपका गागर भर लाया, अब दो मेरे सवाल का जवाब।”
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तब गुरूजी बोले.. मैंने तेरे सवाल का जवाब दे दिया लेकिन शायद तेरे समझ नहीं आया तो सुन..
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*यह दुनिया एक अँधेरी नगरी है, जिसमें हर एक क्षण एक लालटेन की रोशनी की तरह मिला हुआ है।*
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*अगर उस हर एक क्षण को साथ लेकर चलेंगे तो आनंदपूर्वक अपनी मंजिल तक पहुँच जायेंगे।*
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किन्तु यदि भविष्य के अंधकार को देखकर अभी से घबरा जायेंगे तो कभी भी अपनी मंजिल तक नहीं पहुँच पाएंगे।
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इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें भी *भविष्य की कठिनाइयों को देखकर परेशान होने के बजाय, मिले हुए वर्तमान के क्षणों का सदुपयोग करना चाहिए ।*
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जीवन के हर क्षण का सदुपयोग करने में ही बुद्धिमता है । जो लोग किसी देवी सुअवसर की प्रतीक्षा करते है, अक्सर उन्हें निराश होना पड़ता है।